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अब भारत है चांद पर :  क्या है चंद्रमा के साउथ पोल पर ? क्यों हैं वैज्ञानिक चंद्रयान 3 को लेकर इतने उत्साहित ?

वैसे तो भारत चंद्रमा पर पहुंचने वाला चौथा देश है लेकिन चंद्रमा के साउथ पोल पर भारत से पहले कोई नहीं पहुंच पाया था। बीते हफ्ते रूस के लूना 25 में चंद्रमा के दक्षिण पोल पर लैंडिंग की कोशिश की थी जो असफल रही लेकिन आज यानी 23 अगस्त 2023 को भारत ने एक इतिहास रच दिया। भारत के चंद्रायन तीन पर दुनिया टकटकी लगाकर देख रही थी और भारत में इतिहास रच दिया। 

भारत ने चंद्रमा के साउथ पोल पर सॉफ्ट लैंडिंग कर कर इतिहास रच दिया है लेकिन आखिरकार चंद्रमा के साउथ पोल को इतना विशेष क्यों माना जाता है? क्यों दुनिया भर के वैज्ञानिक चंद्रयान-3 को लेकर इतने उत्साहित थे , क्यों दुनिया भर के वैज्ञानिक चंद्रमा के साउथ पोल का अध्ययन करना चाहते हैं और जानना चाहते हैं कि चंद्रमा का वह हिस्सा जो अंधेरे में डूबा रहता है , वहां क्या है? 

चंद्रयान-3जब 14 पृथ्वी दिनों तक चंद्रमा पर रहेगा और वहां अपनी रिसर्च करेगा तो हमें इन सभी सवालों के जवाब मिल जाएंगे। लेकिन क्या वाकई सवाल यही खत्म हो जाते हैं ?

नहीं ! सवाल यही खत्म नहीं होते हैं। वैज्ञानिक जब भी किसी ग्रह या उपग्रह पर पहुंचने की कोशिश करते हैं तो वह उसे ग्रह पर जीवन को तलाशने की कोशिश भी करते हैं। 

नासा जैसी बड़ी स्पेस एजेंसी का दावा है कि चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के कुछ गड्ढों पर अब सालों से सूरज की रोशनी नहीं पहुंच पाई है और वहां का तापमान – 203 डिग्री सेल्सियस तक हो सकता है। और उनका मानना है कि यहां वैज्ञानिकों को कुछ ऐसा मिल सकता है जो स्पेस साइंस को हमेशा के लिए बदल सकता है।

चंद्रमा के साउथ पोल में वैज्ञानिकों को इसलिए ज्यादा इंटरेस्ट है क्योंकि इसके आसपास परमानेंट रूप से छाया वाले एरिया है जहां पर पानी की बर्फ पाई जाती है ल। चंद्रमा के साउथ पोल की सरफेस पर ऐसे गड्ढे हैं जो अपनी ही तरह से अनोखे हैं इन गड्ढों में सूरज की रोशनी इनके अंदरूनी हिस्सों तक नहीं पहुंच पाती है। और यही कारण है कि यहां ठंड ट्रैप क्रेटर्स है जिनमें फॉसिल रिकॉर्ड्स हो सकते हैं। यह फॉसिल रिकॉर्ड्स हाइड्रोजन पानी की बर्फ और कई वोलेटाइल डेटिंग के हो सकते हैं।

यहां के ठंडे तापमान को ध्यान में रखते हुए चंद्रमा के साउथ पोल में फंसे हुए मैटर्स में कुछ वर्षों में बहुत ज्यादा बदलाव नहीं देखा गया है और इन सब की प्रॉपर रिसर्च करने से अर्ली लाइफ के सुराग मिल सकते हैं। इसलिए साउथ पोल वैज्ञानिकों को हमेशा से फेसिनेट करता आया है। चंद्रमा का साउथ फुल 90 डिग्री साउथ पर सबसे ज्यादा साउदर्नमोस्ट प्वाइंट है। 

चंद्रमा का लूनर साउथ पोल क्रिएटर रिम्स वाला एक ऐसा एरिया है जो लगातार सोलर लाइट में रहता है लेकिन फिर भी क्रिएटर के अंदरूनी भागों में सूरज की लाइट नहीं पहुंच पाती है। भारत के अलावा कई देशों के आर्बिटर्स ने चंद्रमा के साउथ पोल के आसपास के एरिया का पता लगाया है। लूनर ऑर्बिटर्स, क्लेमेंटाइन, लूनर प्रॉस्पेक्टर, लूनर रिकोनिसेंस ऑर्बिटर, कागुया और चंद्रयान -1 ने चंद्रमा के साउथ पोल के आसपास लूनर वाटर की प्रसेंस को डिस्कवर किया था। 

नासा के LCROSS मिशन को कैबियस में काफी मात्रा में पानी मिला। नासा का LCROSS मिशन जानबूझकर कैबियस के फर्श से टकराया और नमूनों से पता चला कि इसमें लगभग 5% पानी था।

क्या थे चंद्रयान-1 और चंद्रयान-2 मिशन 

साल 2008 में इसरो ने एक मून इंपैक्ट प्रोब डेवलप किया था जो 14 नवंबर 2008 को चांद की परिक्रमा कर रहे चंद्रयान एक से अलग हो गया और लगभग 25 मिनट बाद प्लानिंग के हिसाब से शेकलटन क्रिएटर के रिम के पास क्रेश हो गया। शेकलटन क्रिएटर चंद्रमा के साउथ पोल में एक इंपैक्ट क्रिएटर है। इस मिशन के साथ भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर हार्ड लैंड या इंपैक्ट डालने वाला पहला देश बन गया था। जहां प्रोब टकराया था उसे लोकेशन को जवाहर पॉइंट नाम दिया गया। 

भारत का दूसरा चंद्रयान मिशन चंद्रयान- 2 , 22 जुलाई 2019 को लांच किया गया था। इसने भी चंद्रमा के साउथ पोल पर सॉफ्ट लैंडिंग की कोशिश की थी लेकिन दुर्भाग्य से लैंडर सुरक्षित रूप से चंद्रमा की सतह पर उतरने में फेल रहा और जमीन से लगभग 335 मीटर की दूरी पर इसका संपर्क टूट गया था लेकिन चंद्रयान 3 ने इतिहास रच दिया। 

अब भारत चंद्रमा के साउथ पोल पर है। कुछ ही घंटे बाद चंद्रयान तीन का रोवर प्रज्ञान और लैंडर विक्रम , धरती पर साउथ पोल का डाटा भेजने लगेगा।

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